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Monday, December 31, 2018

राज कपूर को डिग्री होने पर भी क्यों नही मिली नोकरी.......

shri 420


श्री 420
राज कपूर   
हिंदी सिनेमा के बहुत ही चर्चित व्यक्तित्व थे|राज कपूर साहब ने फ़िल्मी पर्दे पर आने से पहले स्पॉट बॉय से ले कर असिस्टंट डिरेक्टर तक का सफर तय किया





उनका फ़िल्मी पर्दे पर आना किसी फ़िल्मी घटना के जैसा ही था| राज कपूर साहब का जन्म 14 दिसम्बर 1924 को कपूर हवेली , पेशावर [पाकिस्तान] में हुआ| इनके पिता पृथ्वीराज कपूर रंग मंच के बेहतरीन अभिनेता और निर्माता, निर्देशक थे |राज कपूर साहब भी अपने पिता के साथ पृथ्वी थिएटर्स में काम करने लगे|




 10 वर्ष की आयु में इन्होंने अपनी पहली फिल्म की इंकलाब , बल कलाकार के रूप  में इन्हें कोई विशेष ख्याति प्राप्त नहीं हुई | इस तरह फिल्म निर्माताओं और निर्देशको के साथ जुड़ कर  असिस्टेंट डिरेक्टर बन गए





 एक बार जब ये फिल्म निर्माता केदार शर्मा के साथ काम कर  रहे थे तब फिल्म के  एक  शॉट के लिए इन्हें क्लैप देना था पर इनका ध्यान कही और था इस लिए ये सही से क्लैप नही दे पा रहे थे एक बार तो इन्होंने फिल्म के हीरो की मुछो पर ही क्लैप दे दिया जिससे नाराज हो कर केदार शर्मा जी ने राज कपूर जी को एक थप्पड़ मर दिया




 ये थप्पड़ इनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ , केदार शर्मा जी को राज कपूर जी में एक संजीदा अभिनेता दिखाई दिया उन्हें पता चल गया की इस लड़के का भविष्य अभिनय में है और फिर उन्होंने राज कपूर जी को मेन लीड रोल में ले कर फिल्म नील कमाल बनाई और इसी से राज कपूर साहब ने अभिनेता के रूप में हिंदी सनेमा में अपनी पहचान बनाई



यु तो राज कपूर साहब ने बहुत सी फिल्मो में अपनी
प्रतिभा का लोहा मनवाया था पर एक फिल्म ऐसी थी
जिसने  साधारण जन मानस पर बहुत गहरा प्रभाव डाला

इस फिल्म का नाम है - श्री 420 




राज कपूर साहब हिंदी सिनेमा के बहुत मंझे हुए अभिनेता थे|
उनकी फिल्मे समाज और सम सामयिक मुद्दों से प्रेरित  है|



श्री 420 में राज कपूर साहब ने एक ऐसे नोजवान के चरित्र[राज]को जीवन्त किया है जो काम की तलाश में मुम्बई का रुख करता है और पढ़ा लिखा होने के बाद भी उसे काम नहीं मिलता है ,मुम्बई शहर में कोई उससे सीधे मुह बात नही करता ये बात हम इस वीडियो में देख सकते है|
फिर राज कपूर कैसे मुम्बई में अपना गुजारा करते है 
ये सब क्रिया कलाप हमें फिल्म के दृश्यों से बंधे रखते है ये दृश्य जीवन की उन घटनाओं से प्रेरित होते है जो हमे जीवन की यात्रा में अक्सर देखने को मिलते है 





मुम्बई में अपने संघर्ष के लिए सड़को पर सोना और आजीविका के लिए दन्त मंजन बेचने से लेकर लौंडरी में कपड़े धोने तक के दृश्य को बड़ी ही सहजता से फिल्मांकित किया गया है|




 यह राज कपूर साहब को अपने जीवन से मिले अनुभव ही थे जिससे वह बड़ी ही सहजता के साथ इस चरित्र में जान फूंक सके|




इस फिल्म में
 राज की मुलाकात  विद्या [नर्गिस जी] से होती है| दोनों एक दुसरे को पसन्द करने लगते है



 एक दिन राज कपड़ो की डिलीवरी करने के लिए  एक होटल में जाना पड़ता है जहां राज की मुलाकात माया से होती है जो राज को एक दिन के लिए जुआरी बना कर जुए में जीते हुए सारे पैसे रख लेती है और राज को फटकार लगा कर वापस भेज देती है|





इसी बीच सेठ सोनाचन्द धर्मानन्द की की नजर राज पर पड़ती है|वो राज के जुए खेलने के हुनर से खुश हो कर उसे अपने साथ पार्टनर बना लेता है|इस तरह राज गलत लोगों की सांगत में पर जाता है  और बहुत धनवान हो जाता है



 इसी बीच विद्या उससे सारे रिश्ते तोड देती है और राज अकेला रह जाता है|अब तक सेठ सोना चन्द धर्मानन्द , राज के नाम से बहुत सी फर्जी कंपनीया बनाता है और दुसरे धनवानों को लूटता है इन सब में राज फस जाता है


सेठ सोनाचन्द धर्मानन्द अपनी फर्जी स्कीम से गरीब और बेसहारा लोगों को घर देने का वादा करके उनका पैसा लेकर भागना चाहता है

 राज सेठ को रोकना चाहता है पर बेईमानी के इस दलदल में ऐसे फस जाता है की अब चाहा कर भी कुछ नहीं कर सकता


और अंत में वो इन बेईमानो को सबक सिखाने के लिए खुद बेईमान होने का नाटक करता है और खुद सारे रूपए लेकर चम्पत होने का नाटक करता है|इस सब झमेले के बीच राज पुलिस के सामने पूरे घपले का भंडा फोड़ देता है देखे इस वीडियो में

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